Ram Mandir: एक ऐसा मंदिर जिसके लिए करोड़ों लोगों ने वर्षों तक इंतजार किया

Ram Mandir

श्री राम मंदिर (Ram Mandir) जिसे आज सिर्फ भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व जनता है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में यह हिंदू मंदिर है जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मस्थली है।

History of Ram Mandir: राम मंदिर का इतिहास

राम मंदिर का इतिहास लाल रंगों से लिखी हुई है। मीर बाकी ने 16वीं शताब्दी में राम जन्म भूमि पर बाबरी नमक मस्जिद का निर्माण करवाया था।  जो कि श्रीराम कि जन्मस्थान था

पहली बार हुई FIR

राम मंदिर(Ram Mandir) विवाद में बाबरी मस्जिद बनने के लगभग 330 वर्ष के बाद 1958 में हिंदुओं द्वारा जन्म भूमि परिसर में पूजा किए जाने पर कानूनी कार्यवाही की गई। अयोध्या रिवीजिटेड (Ayodhya Revisited) नामक पुस्तक में लिखा है कि अवध के तात्कालिक थानेदार शीतल दूबे ने अपनी एक रिपोर्ट लगाई जिसमे उन्होंने बताया कि मस्जिद परिसर में एक चबूतरा है, और यह प्रथम कानूनी साक्ष्य था जिसमें राम के वहां होने का प्रमाण मिला। बाद में विवादित भूमि के चारों तरफ तार से घेराबंदी कर दी गई और वहां हिंदू और मुस्लिमों के लिए अलग अलग पूजा और इबादत करने की इजाजत दी गई।

राम लला के घर बनाने की बात अदालत पहुंची।

निर्मोही अखाड़े के महंत श्री रघुवर दास ने 1885 ई० में फैजाबाद के दीवानी न्यायालय में याचिका दायर की कि बाबरी मस्जिद में राम चबूतरे को स्थाई किया जाए और आराध्य श्री राम के लिए पक्का मकान और छत बनाया जाए। तात्कालिक समय में न्यायालय ने राम मंदिर(Ram Mandir) में पूजा पाठ करने का अधिकार होने का आदेश तो सुनाया लेकिन पक्का मकान बनाने की अनुमति नहीं दी।

22 दिसंबर, 1949 को बाबरी ढांचे के चबूतरे पर भगवान राम और सीता माता की मूर्तियां प्रकट हुई।

आजाद भारत में राम मंदिर(Ram Mandir) के लिए किया गया पहला मुकदमा

आजादी के 3 साल बाद अर्थात 1950 में हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद के सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। 16 जनवरी 1950 में विशारद ने ढांचे में मुख्य गुम्बद में स्थित भगवान राम की पूजा करने हेतु आवेदन किया, और विशाराद मामले में कोर्ट ने 03 मार्च, 1951 को मुस्लिम पक्ष को पूजा अर्चना में बाधा न पहुंचाए जाने के हिदायत देने के साथ अपना फैसला सुनाया

पहली बार दोनों पक्षों ने दायर की मुकदमा

राम मंदिर(Ram Mandir) बनाए जाने और पूजा करने हेतु 17 दिसंबर, 1959 को निर्मोही अखाड़े के 6 सदस्यों ने मुकदमा दायर की और उन्होंने अधिकार मांगा। वही दूसरी तरफ से 18 दिसंबर 1961 को मुस्लिम पक्ष से भी एक मुकदमा किया गया। ये मुकदमा केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने किया था, और इसमें उन्होंने उस स्थान को मुसलमानों का बताया तथा उस स्थान को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को देने की बात की गई। तब से लगातार न्यायालय में मुकदमा चलता रहा।

हिंदू मंदिरों पर बनाए गए मस्जिदों के लिए मुक्ति अभियान

विश्व हिंदू परिषद द्वारा हिंदू मंदिरों जैसे राम, कृष्ण और शिव जी के मन्दिरों पर बनाए गए मस्जिदों को हटाने का अभियान चलाया। इसी क्रम में संत महात्माओं ने राम मंदिर (Ram Mandir) का ताला खोलने का फैसला किया। वही से शुरू हुआ मुक्ति का अभियान।

राम मंदिर(Ram Mandir) परिसर का ताला खोला गया।

1986 में अधिवक्ता उमेश पाण्डेय द्वारा न्यायालय में दी गई अर्जी के क्रम में न्यायधीश के एम पाण्डेय ने परिसर का ताला खोलने का आदेश दिया, जिसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के खंडपीठ लखनऊ में मुकदमा किया गया जो की खारिज हो गया। 1990 में आडवाणी द्वारा रथ यात्रा निकाला गया। अब हिंदुओं में राम मंदिर(Ram Mandir) को लेकर आस्था एक अलग रूप ले रही थी और हिंदू एक साथ होने लगे थे। आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वही से शुरू हुई मंदिर निर्माण की राजनीतिक पहलू। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद तात्कालिक सरकार गिर गई और चंद्र शेखर की अगुवाई में कांग्रेस ने सत्ता संभाली लेकिन ज्यादा दिन नहीं चल सका और पुनः सरकार गिर गई। एक बार से चुनाव हुआ और कांग्रेस सत्ता में वापस आई।

विवादित ढांचा को गिराया गया फिर मिली पूजा करने की अनुमति

ये वो समय है जिसके बारे में सुनकर करोड़ों हिंदुओं के खून खौल जाते हैं समय था 06 दिसंबर 1992 का जब हजारों की संख्या में अयोध्या पहुंचे कारसेवकों में राम जन्म भूमि पर बने विवादित ढांचे को गिरा दिया और भगवान की पूजा अर्चना की। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। तात्कालिक समय में पीवी नरसिन्हा राव की सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया। राम मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद जब कारसेवक वापस जा रहे थे तो गोधरा में उनके ट्रेन के डब्बों में आग लगा दी गई जिसमे हजारों लोगों की मौत हो गई थी। विवादित ढांचा गिराए जाने पर नेताओं सहित हजारों लोगो पर मुकदमा किया गया। 8 दिसंबर 1992 को न्यायालय द्वारा राम स्थली पर पूजा अर्चना की अनुमति मिल गई, और उसके बाद शुरू हुई मालिकाना हक की सुनवाई। 

न्यायालय में एक लंबे समय तक मामला चलता रहा और उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक मामला गया। न्यायालय ने कई बार दोनों पक्षों को मध्यस्थता की बात कही लेकिन मध्यस्थता नही हो सका।

हिंदुओ के पक्ष में आया फैसला

16वीं शताब्दी से चल रही विवाद का अंत का समय आ गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने 09 नवंबर, 2019 को विवादित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि मानते हुए 2.77 एकड़ की भूमि राम जन्मभूमि के नाम करते हुए हिंदुओ के पक्ष में फैसला सुनाया, और कोर्ट ने 3 महिनें में एक ट्रस्ट बनाए जाने और उसमे निर्मोही अखाड़े के एक सदस्य को शामिल करने का फैसला सुनाया। वही मुसलमानों के लिए भी 5 एकड़ की भूमि किसी उपर्युक्त जगह पर उपलब्ध कराए जाने का फैसला सुनाया।

शुरू किया गया मंदिर निर्माण का कार्य

5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट स्थापना करने की घोषणा करते हुए। 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर बनाने का शिलन्यास किया।

खत्म हुआ वर्षों का इंतजार आ गई खुशी का दिन

अब वह दिन आ ही गया जिसका इंतजार करोड़ों भारतीय एक लंबे समय से कर रहे थे। भारतीय बहुत ही प्रशंसित (Acclaimed) हुए क्योंकि श्रीराम की जन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर (Ram Mandir) का निर्माण किया गया और जिसका प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी, 2024 को निर्धारित किया गया। इस दिन पूरे देश में एक बार फिर से श्रीराम के अपने घर में निवास करने के उपलक्ष्य में दिपावली मनाए जाने का निर्णय लिया गया है।

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